लोगों की राय

गीता प्रेस, गोरखपुर >> भगवान कैसे मिलें

भगवान कैसे मिलें

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :126
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1061
आईएसबीएन :00000

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

243 पाठक हैं

प्रस्तुत है भक्त को भगवान कैसे मिलें....

।। श्रीहरिः ।।

भजन-ध्यान ही सार है

पूज्य मामाजीके साथ बनारस आनेके लिये लिखा सो अवश्य आना चाहिये। तीर्थमें समय बिताना चाहिये। अब रतनगढ़में रहनेमें विशेष लाभ नहीं है, बनारसमें भजन-सत्संगमें समय बिताना चाहिये। गाँवके फन्देसे निकलना चाहिये।

समय बीता जा रहा है, चेतना चाहिये। पू० मामाजीके नित्य चरणस्पर्श करते होंगे। उनकी सेवा करनेका भी अभ्यास विशेषरूपसे डालना चाहिये तथा उनके वचनोंका पालन विशेषरूपसे करना चाहिये। उनके इच्छानुसार करना परम धर्म है, बाकी सब साधारण धर्म है। अब भजन-ध्यानके लिये विशेष समय बिताना चाहिये।

संसारके सारे काम तुमने कर लिये। अब तो परमार्थमें ही समय बिताना चाहिये ताकि फिर पश्चाताप नहीं करना पड़े। एकान्तमें बैठकर नियमपूर्वक ध्यानसहित नामजप विशेषरूपसे करना चाहिये। चलते-फिरते, उठते-बैठते हर समय नामजप करना चाहिये और मनसे सर्वत्र भगवान्का दर्शन करना चाहिये। मनसे भगवान्का ध्यान, पूजा, पाठ, भोग, आरती, प्रार्थना, स्तुति और निरन्तर जप करनेका अभ्यास करना चाहिये। जिस प्रकार संसारी मनुष्य संसारका संकल्प करता है, उसी प्रकार तुम्हें भगवान्का संकल्प करना चाहिये। इस प्रकार करनेसे भगवान्का प्रभाव जानकर भगवान्में श्रद्धा-प्रेम बढ़कर साधन तेज हो सकता है और भगवान्का दर्शन होकर भगवान्की प्राप्ति हो सकती है, इसलिये इस कामको विशेष चेष्टासे कर्त्तव्य समझकर करना चाहिये।

आपने लिखा कि हमारे तो आपका ही भरोसा है। भगवान्के शरण होना चाहिये, उनका भरोसा रखना चाहिये। मैं तो एक साधारण मनुष्य हूँ। आपने लिखा कि मन वशमें नहीं है, यदि मनको वश में करना हो तो गीता ६। ३५-३६ की व्याख्यामें गीतातत्त्वविवेचनीमें बहुत-सी बातें लिखी हैं, उसमें आपके जो अनुकूल पड़े उसका अभ्यास करना चाहिये। साधनके लिये विशेष प्रयास करना चाहिये। अभ्यास और वैराग्यसे मन वश में हो सकता है। भगवान्के नामका जप निरन्तर करनेकी चेष्टा करनी चाहिये, भगवान्की शरण होना चाहिये। गीता २।। ७, ९।। ३२-३४ के अनुसार भगवान्की शरण होनेसे दीवाला मिट सकता है, अभ्यास तेज हो सकता है, भगवान् भी विशेष दया कर सकते हैं। मनुष्यकी दयासे कुछ भी काम नहीं चलता।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. भजन-ध्यान ही सार है
  2. श्रद्धाका महत्त्व
  3. भगवत्प्रेम की विशेषता
  4. अन्तकालकी स्मृति तथा भगवत्प्रेमका महत्त्व
  5. भगवान् शीघ्रातिशीघ्र कैसे मिलें?
  6. अनन्यभक्ति
  7. मेरा सिद्धान्त तथा व्यवहार
  8. निष्कामप्रेमसे भगवान् शीघ्र मिलते हैं
  9. भक्तिकी आवश्यकता
  10. हर समय आनन्द में मुग्ध रहें
  11. महात्माकी पहचान
  12. भगवान्की भक्ति करें
  13. भगवान् कैसे पकड़े जायँ?
  14. केवल भगवान्की आज्ञाका पालन या स्मरणसे कल्याण
  15. सर्वत्र आनन्दका अनुभव करें
  16. भगवान् वशमें कैसे हों?
  17. दयाका रहस्य समझने मात्र से मुक्ति
  18. मन परमात्माका चिन्तन करता रहे
  19. संन्यासीका जीवन
  20. अपने पिताजीकी बातें
  21. उद्धारका सरल उपाय-शरणागति
  22. अमृत-कण
  23. महापुरुषों की महिमा तथा वैराग्य का महत्त्व
  24. प्रारब्ध भोगनेसे ही नष्ट होता है
  25. जैसी भावना, तैसा फल
  26. भवरोग की औषधि भगवद्भजन

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book